रविवार, 3 जून 2012

दसवी पातशाही गुरु गोविन्दसिंध जी





गुरु गोविंदसिंह जी 



जन्म ---22 दिसंबर 1666 ई.  
ज्योति -ज्योत--7 अक्तुम्बर 1708 ई. 

आज के भौतिक युग में अपने बहु संख्यक होने के कारण देश के शासन -प्रशासन  में अपना प्रभुत्व कायम हो जाने के  कारण हमारे वर्तमान शासक गुरु गोविंद सिंह जी और उनके निर्मल खालसा -पंथ के अनगिनत परोपकारो को भूलते जा रहे हैं ---इसका सबसे बड़ा प्रमाण नवम्बर 1984 में उस समय की सताधारी पार्टी द्वारा  पूर्व नियोजित निर्मम सिक्ख  नरसंहार और सिक्ख स्त्रियों को बहुत बड़े स्तर पर अपमानित किए जाने की दुखद धटना क्रम को लेकर देखा जा सकता हैं--इस शासक पार्टी के कुछ नेताओ ने देश की राजधानी दिल्ली  में अपने नेतत्व में हजारो सिक्खों का कत्लेआम कराया --हमारा तथाकथित लोकतांत्रिक सिस्टम तथा इसकी निष्पक्ष  न्यायपालिका आज तक किसी भी दोषी को दंडित नहीं कर सकी  हैं ----????

ऊपर से देश के वर्तमान गुहमंत्री सिक्खों को नवम्बर 84 का सिक्ख कत्लेआम भूल जाने का मशवरा दे  रहे हैं ? यह कैसी  विडंबना हैं ?     
यह श्री गुरु गोविंद सिंह जी और उनके खालसा -पंथ के परोपकारो का  कैसा सिला हैं ??
जिस धर्म की रक्षा के लिए उन्होंने अपने पुरे परिवार का  बलिदान किया --आज उन्ही की बनाई हुई कौम को अपनी पहचान बनाए रखने में कई संकटों का सामना करना पड रहा हैं ---


देश यह सच्चाई भूल चूका है की मात्र ९ बर्ष की आयु में गुरूजी ने हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए अपने पिता गुरु तेगबहादरजी को बलिदान के लिए प्रेरित किया था ---जब मुग़ल साम्राज्य की फौजे 'करो या मरो' की तर्ज पर हिन्दुओ को मार -मार कर मुसलमान बना रही थी ,तब कश्मीर के ब्राहमण गुरू तेग बहादर जी के दरबार में याचिका लेकर पहुंचे और दया की गुहार लगाईं --अपने धर्म का वास्ता दिया तब गुरूजी ने कहा की ----'जाओ,उनसे कहो की पहले हमारे गुरु  का धर्म परिवर्तित करो --फिर हम अपना धर्म बद्लेगे !'   

इस तरह अपना शीश देने वो दिल्ली चल पड़े --चांदनी -चौक  पर उन्होंने अपना शीश देश और  कौम की खातिर निछावर किया --जहाँ उनका शीश  काटा  था वहां आज गुरुद्वारा( शीशगंज साहेब) बना हैं --




(गुरुद्वारा शीशगंज साहेब , देहली )


( और यह हैं ८४ के दंगो के टाइम जलता हुआ शीशगंज गुरुद्वारा )   


( जुल्म करते मुग़ल सैनिक  और सहते निरह सिक्ख ) 
  
पिता के बलिदान के समय गुरूजी की आयु महज ९  साल की ही थी --इस अल्प आयु में ही गुरूजी ने युध्य  विधा में पारंगत हासिल की --कई लड़ाईयां उन्होंने लड़ी ---आंनदपुर साहिब में अपना ठिकाना बना कर वो अपने आने वाले मुरीदो को कहते थे की मेरे  लिए नजराने लाना हो तो माया  (पैसे )  नहीं शास्त्र और घोड़े लाए --उन्होंने  फौज भी इक्कठा करनी शुरू कर दी --
गुरूजी के  चार बेटे थे --चारो होनहार ---!


( गुरूजी के चारो पुत्र ) 



गुरूजी ने अनेक  लड़ाईयां लडी --उस समय औरंगजेब बादशाह था --शाही सेना ने बहुत उत्पात मचा रखा था --गुरूजी का भंगानी का युध्य ,चमकौर और मुक्तसर का युध्य और आनंद साहेब का युध्य प्रसिध्य हैं ---  चमकौर  की कच्ची गडी में गुरूजी ने ४० सिक्खों की फौज के साथ जिस हिम्मत और दलेरी से दस लाख मुग़ल शाही सेना से टक्कर ली ,ऐसी मिसाल इतिहास में कही नहीं मिलती --       

                   
(युध्य में वीरता से लड़ते गुरु गोविन्द सिंह जी )
चित्र --गुरुद्वारा हजूर साहेब 


(युध्य   का  मैदान --चित्र गुरुद्वारा हजूर साहेब) 

( दोनों साहिबजादों  के  साथ युध्य में जाते हुए---चित्र गुरुद्वारा हजूर साहेब .)


युध्य में  शानदार विजय प्राप्त की पर चमकौर की लड़ाई में गुरूजी के दोनों बड़े पुत्र शहजादा अजीतसिंह और शहजादा जुझार सिंह वीरगति को प्राप्त हुए ---दोनों छोटे पुत्रो को माता गुजरी जी अपने साथ पुराने सेवादार गंगू के घर ले गई --इस सेवादार ने लालच में आकर धोखे से दोनों बालको को कोतवाल को पकडवा दिया --जिसने सरहिंद के सूबेदार वजीर खां के हवाले कर दिया --वजीर खां गुरु जी से बहुत जलता था उसने दोनो छोटे साहिबजादों शहजादे जोरावर सिंह और शहजादे फतेहसिंह  को नीवं में जिन्दा चुनवा दिया -- दोनों बालक बहुत छोटी उम्र में ही शहीद हो गए --माताजी से यह देखा नहीं गया वो स्वर्ग सिधार गऐ------


(दोनों साहिबजादों के साथ माता गुजरीजी  --जंगल -जंगल भटकते हुए) 
चित्र --गुरुद्वारा हुजुर साहेब


( माता गुजरीजी  और दोनों साहेबजादो को  बुर्ज में कैद किया हुआ था ) 
चित्र --गुरुद्वारा हुजुर साहेब 



( जिन्दा दिवार में चुनते हुए छोटे साहिबजादो को )
चित्र --गुरुद्वारा हुजुर साहेब 


(सिक्ख फौजों  को बन्दुक चलाने की तालीम देते हुए दसवे पातशाह )
चित्र --गुरुद्वारा हुजुर साहेब

अपने चारो बच्चो की मौत की खबर सुनकर गुरूजी बहुत क्रोधित हुए -- हैरान और दुखी हो उन्होंने  औरंगजेब  को बहुत लानते दी और दहाड़ते हुए बोले --'क्या हुआ गीदड़ के धोखे से शेर  के चार लाल खो चुके हैं .परन्तु शेर अभी जिन्दा हैं ,जो की बदला लेकर रहेगा "


तब उन्होंने गुस्से में औरंगजेब  को एक चिठ्ठी लिखी --जिसे 'जफरनामा ' कहा गया --यह  पत्र फारसी लिपि में था जफरनामा यानी जीत का पत्र------

"चार मुए तो क्या हुआ 
जीवन कई हजार "


          " यानी मेरे चार बच्चे नहीं हैं तो क्या हुआ --
मेरे चार हजार बच्चे अभी भी जीवित  हैं"

ऐसे वचन कहना हर किसी के बस  की बात नहीं हैं ---उन्होंने औरंगजेब को ललकार कर कहा की --"तेरा कर्म लूटना और धोखा -फरेब हैं पर मेरी राह सच्चाई की हैं  --तुने अपने ही भाईयो का खून पिया हैं --तू जल्लाद हैं"
कहते हैं की औरंगजेब  इस पत्र को पढ़कर खूब तडपा-- उसकी तडप को मीर मुंशी जी कुछ यु लिखते हैं :---

"मुझे अपना पता नहीं गुनाह बहुत किये हैं,
मालुम नहीं किस सज़ा में गिरफ्तार हूँगा !"


तब औरंगजेब गुरूजी से मिलने को तडपने लगा --उसने गुरूजी से मिलने की इच्छा प्रकट की; उस समय औरंगजेब  दक्षिण में मराठो से युध्य कर रहा था--- तब गुरूजी उससे मिलने दक्षिण की और चल पड़े .----


(अपने बच्चो के लिए व्याकुल गुरूजी --जंगलो में भटकते हुए )
  


अभी  गुरूजी राजस्थान ही पहुंचे थे की औरंगजेब  की म्रत्यु का समाचार उन्हें मिला --दक्षिण के छोटे से गाँव खुलताबाद में इस सदी का सबसे बेरहम ज़ालिम बादशाह औरंगजेब का अंत हुआ --

"दो फूल भी मज़ार पे उनके नहीं फलक ,
                        लेकर जमीं जिन्होंने हजारों बनाए बाग़ !"      -अज्ञात 


  अपने जीवनकाल में जिसने अनेक जुल्म ढाए --ऐसे बादशाह का यू  लाचारी में अंत हुआ ..-...हर अत्याचारी का एक न एक दिन अंत होता ही है ---? १९८४  में मारे गए सिक्खों का लहू भी चित्कारेगा --और उन्हें  मारने वाले कभी चैन से नहीं रह पाएगे -- क्योकि इस अदालत के ऊपर भी एक और अदालत हैं--जहाँ इंसाफ होता हैं -----  




( ऐसे होनहार और जुझारू कौम को मेरा सत -सत नमन ) 
मुझे गर्व हैं की मैने इस कौम में जनम लिया 



ऐसे गुरु को बल -बल जावा  





7 टिप्‍पणियां:

  1. सही कहा जी आपने छल फरेब कर के भले ही हम निचे की अदालत से बच जायं किन्तु ऊपर की अदालत से कभी नहीं बच सकते ... ईश्वर के दरबार में किये गए पापों के लिए कोई क्षमा नहीं है ...पाप का दंड तो भोगना ही होगा ..सिक्ख पंथ के हिंदू जाति के प्रति योगदान को कभी नहीं भुलाया जा सकता ...

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    1. सही कहा मदन जी ...हमारे कर्मो का हिसाब ऊपर भी देना ही हैं ..

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  2. गिर पड़ी मैं जब -जब पथरीली राहो पर ,
    बढ़कर मेरा हाथ थामने वाले आप ही तो हैं ......!
    बहुत ही उम्दा लाइन

    दर्शन कौर जी आपका मेरे ब्लॉग पर स्वागत है
    अपने पहली बार मेरे ब्लॉग पे अपनी रचना पोस्ट की है
    आपको बहुत बहुत बधाई और आशा करता हूँ की आप आगे भी मेरा युही सहयोग करती रहेंगी मेरा एक और ब्लॉग है जिनका लिंक मैं निचे दे रहा हूँ
    http://vangaydinesh.blogspot.in/

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  3. ऐतिहासिक पोस्ट..
    गुलामी से मुक्ति के लिए हमारे देश के जिआलों ने कितने जुल्म सहे इसकी चित्रमयी रोचक और रोमांचक प्रस्तुति

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  4. आनंद आ गया गुरु दर्शन कर ! आभार आपका !

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  5. Main sabhi guru ji ko khaskar
    Guru gobind ji sat sat Naman Karta hun

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  6. बुआ जी , रोंगटे खड़े हो गये..नमन गुरू जी और उनके वीर अनुयायी को ....आभार आपका जो ये सब जान पाया. मुझे भी गर्व है , कि मैं उस बिहार में जन्मा जहाँ दशम गुरू अवतरित हुये.
    सत श्री अकाल

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